Mera Mujhmein Kuchh Nahin
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Description
करो सत्संग गुरुदेव से अंधेरा नया नहीं, अति प्राचीन है। और ऐसा भी नहीं है कि प्रकाश तुमने खोजा न हो। वह खोज भी उतनी ही पुरानी है, जितना अंधेरा। क्योंकि यह असंभव ही है कि कोई अंधेरे में हो और प्रकाश की आकांक्षा न जगे। जैसे कोई भूखा हो और भोजन की आकांक्षा पैदा न हो। नहीं, यह संभव नहीं है। भूख है तो भोजन की आकांक्षा जगेगी। प्यास है तो सरोवर की तलाश शुरू होगी। अंधेरा है तो आलोक की यात्रा पर आदमी निकलता है। अंधेरा भी पुराना है, आलोक की आकांक्षा भी पुरानी है; लेकिन आलोक मिला नहीं। उसकी एक किरण के भी दर्शन नहीं हुए। भटके तुम बहुत, खोजा भी तुमने बहुत, लेकिन परिणाम कुछ हाथ नहीं आया। बीज तो तुमने बोए, लेकिन फसल तुम नहीं काट पाए। क्योंकि अंधेरे में चलने वाले आदमी को प्रकाश का कोई भी तो पता नहीं। उसने प्रकाश कभी जाना नहीं। वह उसे खोजेगा कैसे? वह किस दिशा में यात्रा करेगा? ओशो #1: करो सत्संग गुरुदेव से #2: गुरु मृत्यु है #3: पिया मिलन की आस #4: गुरु-शिष्य दो किनारे #5: आई ज्ञान की आंधी #6: सुरति का दीया #7: उनमनि चढ़ा गगन-रस पीवै #8: गंगा एक घाट अनेक #9: सुरति करौ मेरे सांइयां #10: सत्संग का संगीत गुरु मृत्यु है ज्ञान और ध्यान बड़े संयुक्त हैं। ज्ञान का अर्थ है: जानकारी और जानकारी से भरा हुआ चित्त। और ध्यान का अर्थ है: जानकारी से शून्य चित्त। जैसे एक कमरे में फर्नीचर भरा है–यह ज्ञान की अवस्था है। फिर फर्नीचर कमरे के बाहर निकाल दिया, कमरा बिलकुल खाली–यह ध्यान की अवस्था। ध्यान उसी का अभाव है, ज्ञान जिसका भाव है। ज्ञान में जो कूड़ा-करकट तुम इकट्ठा कर लेते हो–शब्द, सिद्धांत, शास्त्र; ध्यान में वे सब छोड़ देने होते हैं।
Additional information
Weight | 6279549 g |
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Dimensions | 6279940 × 627992749 × 627968449 cm |
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